जीवन परिचय
पट्टाधीश निर्यापक
आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज का जीवन परिचय
आपका जन्म वैशाख बदी 9 वि. सं. 1967 में फिरोजाबाद नगर उत्तर भारत में हुआ पिता का नाम रतनलाल जी और माता का नाम बूंदादेवी था आपके माता पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे जन्म नाम महेंद्रसिंह था आप में धार्मिक संस्कार भरे हुए थे तद्रुप आपकी प्रवृत्ति भी थी अल्पायु से ही विद्यार्जन करने लगे फल स्वरुप आपने भिषगाचार्य , न्यायाचार्य , बी.ए. की लौकिक शिक्षण के साथ-साथ काव्यतीर्थ , शास्त्री की परीक्षाएंँ उत्तीर्ण की मुनि चन्द्रसागर जी से इंदौर में हुए लोड साजन बड़साजन के विवाद को आपने अपनी वाणी से निपटाया आपने विवाह करने से इंकार कर दिया और सप्तम प्रतिमा के व्रत ले लिए सं. 1995 में मुनि वीरसागर जी से क्षुल्लक के व्रत लिए क्षुल्लक को मुनि दीक्षा दाता गुरु की योगता नहीं पाकर दक्षिण भारत की ओर बिहार किया उदगांव में परम पूज्य चरित चक्रवर्ती , मुनि कुञ्जर श्री 108 आदि सागर जी महाराज अंकलीकर को पाया और उनसे 32 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा ले ली नाम मुनि श्री महावीरकीर्ति जी रखा गया ज्ञान ध्यान तप में अपना समय व्यतीत करते थे समय पर मुनि दीक्षा दातागुरु ने आपको अपना आचार्य पद प्रदान करके समाधि की जिसके बाद आप निर्यापक आचार्य रहे। बाद में शेडवाल (कर्नाटक) मैं अनेक चतुर्विध
संघ और राजा महाराजाओं की उपस्थिति में आचार्य पद उत्सव मनाया गया । आप अनेक विषयों तथा 18 भाषाओं के उच्च कोटि के विद्वान थे जैन धर्म तथा संस्कृति की प्रभावना के लिए सम्पूर्ण भारत में बिहार किया था आपके ऊपर अनेक घातक हमले हुए घोर उपसर्ग और शारीरिक पीड़ा भी कई बार सहन करनी पड़ी परंतु आपने समस्त उपद्रव को बड़ी शांति और संयम के साथ सहन किया तथा अपने कर्तव्य से रञ्च मात्र भी विचलित नहीं हुए आप जैसे आचार्य तेजस्वी निर्भीक वक्ता अध्यात्म वक्ता मंत्र तंत्र के ज्ञाता आत्मा जयी पर दुख विनाशक स्व पर हितकारी धर्म श्रद्धालु थे आपके द्वारा धर्म की प्रभावना की वृद्धि अधिक हुई आपकी देशना से प्रभावित होकर आचार्य विमलसागर महाराज , गणधर आचार्य कुन्थुसागर महाराज , पट्टाचार्य सन्मतिसागर महाराज , गणिनी आर्यिका विजयमति माता जी क्षुल्लकमणी शीतलसागर महाराज इत्यादि आपके दीक्षित शिष्य प्रशिष्य धर्म की प्रभावना कर रहे हैं आपके समाधि 6 जनवरी सन् 1972 माघ बदी 6 को बड़े वैभव के साथ मेहसाना गुजरात में हुई।
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